नालंदा विश्वविद्यालय की क्या है कहानी
नालंदा विश्वविद्यालय की कहानी भारतीय इतिहास और शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस प्राचीन विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यह विश्वविद्यालय नालंदा, बिहार में स्थित था और इसे प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र माना जाता था। यहां पर विश्व के विभिन्न हिस्सों से छात्र अध्ययन के लिए आते थे, जिसमें तिब्बत, चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, तुर्किस्तान, इंडोनेशिया और मध्य एशिया शामिल थे।
नालंदा विश्वविद्यालय की प्रमुख विशेषताएँ:
1. विषयों की विविधता :
यहां पर बौद्ध धर्म, वेद, व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित, ज्योतिष, और अन्य विज्ञानों का अध्ययन होता था।
2. प्रसिद्ध शिक्षक :
आचार्य नागार्जुन, आचार्य आर्यदेव, और आचार्य शीलभद्र जैसे महान शिक्षक यहां पढ़ाते थे।
3. भव्य पुस्तकालय :
नालंदा का पुस्तकालय “धर्मगंज” नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ और पुस्तकें थीं।
नालंदा का पतन:
12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया और इसे नष्ट कर दिया। यह आक्रमण इतना भीषण था कि पुस्तकालय में लगी आग कई महीनों तक जलती रही।
पुनर्निर्माण और आधुनिक युग:
21वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की योजना बनी। 2010 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक पारित किया और 2014 में आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।
बिहार की राजनीति में नालंदा का महत्व:
नालंदा विश्वविद्यालय का बिहार की राजनीति में एक विशेष स्थान है। यह स्थान न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह बिहार के विकास और पहचान का प्रतीक भी है।
1. पर्यटन और आर्थिक विकास :
नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण से बिहार में पर्यटन को बढ़ावा मिला है, जिससे आर्थिक विकास को भी बल मिला है।
2. राजनीतिक गौरव :
बिहार के राजनेता नालंदा विश्वविद्यालय की विरासत का उपयोग अपनी राजनीतिक छवि को मजबूत करने के लिए करते हैं। इससे राज्य को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है।
3. शैक्षणिक केंद्र :
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय को उच्च शिक्षा और अनुसंधान के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे राज्य की शिक्षा प्रणाली को बल मिल रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय की कहानी न केवल भारत के शिक्षा इतिहास का गौरवशाली हिस्सा है, बल्कि यह बिहार की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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