Marital Rape: मैरिटल रेप कानूनी से ज्यादा सामाजिक है, यह अपराध नहीं- केंद्र सरकार

Marital Rape: मैरिटल रेप कानूनी से ज्यादा सामाजिक है, यह अपराध नहीं- केंद्र सरकार

गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दर्ज किया, जिसमें मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने वाले पेटिशन की मांग का विरोध किया है। साथ ही सरकार का कहना है कि यह एक सामाजिक मसला है और सहमति के विरोध के लिए परिवार के बाहर और अंदर के लिए अलग-अलग सजा देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अलावा ये फैसला विधायिका को करना चहिए।

केंद्र सरकार ने कहा है कि रेप के आपत्ति में यह प्रोविजन है कि पति अपनी पत्नी के साथ उसकी बिना मर्जी के संबध बनाता है तो यह रेप नहीं माना जाता है। साथ ही केंद्र सरकार ने कहा, संसद ने इस मामले में डिबेट के बाद इस अपवाद को जारी रखा है। इसे अगर अपराध के क्षेत्र में लायेंगे तो इससे वैवाहिक जीवन और विवाह संस्थान को भारी नुक्सान पहुंचेगा।

 

वैवाहिक जीवन अस्थिर बनेगा

होम मिनिस्ट्री ने केंद्र सरकार के तरफ से हलफनामा दायर किया और कहा कि वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के बीच होने वाले संबंध के मामले को रेप के दायरे में लाना बहुत कठोर सिस्टम होगा और साथ ही इसका समाजिक, और कानूनी असर पड़ेगा। जिसके कारण इसका असर शादी संस्थान पर होगा मतलब कि शादी संस्थान की बुनियाद हिल जायेगा। वहीं केंद्र सरकार ने यह भी माना है कि पति का मौलिक अधिकार नहीं है कि वे अपनी पत्नी की सहमति का विरोध करे। साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी कहा, रेप कानून किसी एसे वेक्ति के खिलाफ सजा देता है जो महिला के साथ जबरदस्ती संबंध बनाता है। परंतु वैवाहिक जीवन में रेप कानून को आपत्ति में रखा है हैचु यानी मैरिटल रेप अपराध नहीं है, अगर इसे रेप के तहत सजा दिया जाए तो यह वैवाहिक फ्रेमवर्क को अस्थिर कर देगा।

अपराध से वैवाहिक जीवन में उल्टा असर पड़ेगा

आईपीसी धारा 375 में रेप को बताया गया है और 375(2) में अपवाद में पति को रखा है। जिसका मतलब है कि शादी- शुदा जिंदगी में अगर पति अपने पत्नी के साथ बिना उसकी इच्छा के संबंध बनाता है तो रेप नही माना जाएगा। इस लीगल प्रोविजन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और कहा मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाया जाए। जिसमें केंद्र सरकार ने कहा, यह कानून सही है और जबरदस्ती संबंध बनाने के मामले में ऑप्शनल लीगल प्रोविजन है इसके लिए टॉर्चर और डोमेस्टिक वायलेंस कानून के तहत शिकायत का प्रोविजन है। अगर क्रिमिनल फोर्स वैवाहिक जीवन में रेप लॉ अप्लाई किया जाएगा तो इससे बड़ा इफैक्ट होगा और वैवाहिक जीवन में उल्टा असर होगा।

सहमति जरूरी लेकिन रेप के रूप में नहीं माना जायेगा- केंद्र सरकार

केंद्र सरकार का मानना है कि सहमति ज्यादा जरूरी है। जिस पर सरकार ने कहा, रेप लॉ के एक कठोर कानून है परंतु वैवाहिक जीवन में पति के ऊपर कानून को इस्तेमाल करते हैं तो शादी संस्थान की बुनियाद हिल जाएगा और इस पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसे संसद ने अपवाद के रूप में रखा था। बलात्कार विरोधी लॉ के बनाते समय वर्मा कमिशन ने इस अपवाद को खत्म करने की सिफारिश की थी, लेकिन वहीं संसद ने इस अपवाद को बनाए रखा। अगर यह अपवाद खत्म हुआ तो इस कानून का मिसयूज होने लगेगा और फेक केस के बेस पर शादी संस्थान टूट सकता है।

आखिर क्या बात हुई

सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप मामले पर सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत में फाइलिंग अर्जी में मांग की है कि, मैरिटल रेप को अपराध के कैटेगरी में लाना चाहिए। अभी बालिग पत्नी के साथ पति से जबरन संबंध बनाने पर यह रेप के रूप में नहीं आता। लेकिन इसे रेप के अपवाद में रखा है। मैरिटल रेप केस में डिफरेंट हाई कोर्ट का डिफरेंट फैसला सामने आया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और इसकी सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई के बाद सारा मामला साफ सामने आ जायेगा।

मैरिटल रेप पर दिल्ली हाई कोर्ट में क्या फैसला आया

मैरिटल रेप पर दिल्ली हाई कोर्ट में इसे अपराध के दायरे में लाए जानें के लिए अर्जी दाखिल हुई थी। 11 मई 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप पर जो फैसला किया था वह बाटा हुआ था। जिसे 2 जजों के बीच में से एक जज ने मैरिटल रेप को अपराध के श्रेणी में लाने की बात की तो, वहीं दुसरे जज ने इसके विपरीत मंशा रखी। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने लाया है।

कानून ने मैरिटल रेप को अपवाद माना

आईपीसी धारा- 375 या भारतीय न्याय संहिता की धारा- 63 में रेप को अच्छे से बताया गया है। जिस पर कानून का कहना है, अगर किसी भी महिला के साथ कोई वेक्ती उसकी इच्छा के विरुद्ध उससे जबरन संबंध बनाने की कोशिश करता है तो वह रेप होगा। साथ ही बालिग पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने पर वह रेप का अपवाद होगा। अगर वहीं पत्नी नाबालिग है तो रेप केस दर्ज किया जाएगा लेकिन पत्नी बालिग है तो फिर पति को रेप के अपवाद में रखा जाएगा।

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